जानिए आमेर के किले के बारे में-
आमेर के किले का इतिहास-
किले का नामकरण -
प्राचीन काल में आमेर को अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ के नाम से जाना जाता था। कुछ लोगों का कहना था कि अम्बकेश्वर भगवान शिव के नाम पर यह नगर "आमेर" बना, परन्तु अधिकांश लोग और तार्किक अर्थ अयोध्या के राजा भक्त अम्बरीश के नाम से जोड़ते हैं। कहते हैं भक्त अम्बरीश ने दीन-दुखियों के लिए राज्य के भरे हुए कोठार और गोदाम खोल रखे थे। सब तरफ़ सुख और शांति थी, परन्तु राज्य के कोठार दीन-दुखियों के लिए खाली होते रहे। भक्त अम्बरीश से जब उनके पिता ने पूछताछ की तो अम्बरीश ने सिर झुकाकर उत्तर दिया कि ये गोदाम भगवान के भक्तों के गोदाम है और उनके लिए सदैव खुले रहने चाहिए। भक्त अम्बरीश को राज्य के हितों के विरुद्ध कार्य करने के लिए आरोपी ठहराया गया और जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा अंकित किया जाने लगा तो लोग और कर्मचारी यह देखकर दंग रह गए कि कल तक जो कोठार खाली पड़े थे, वहाँ अचानक रात भर में माल कैसे भर गया। भक्त अम्बरीश ने इसे ईश्वर की कृपा कहा। चमत्कार था यह भक्त अम्बरीश का और उनकी भक्ति का। राजा नतमस्तक हो गया। उसी वक्त अम्बरीश ने अपनी भक्ति और आराधना के लिए अरावली पहाड़ी पर इस स्थान को चुना, उनके नाम से कालांतर में अपभ्रंश होता हुआ अम्बरीश से "आमेर" या "आम्बेर" बन गया। इस तरह इस किले का नामकरण हुआ।
अम्बेर किला जो की आमेर में स्थापित है। आमेर शहर 4 वर्ग किलोमीटर (1.5 वर्ग मीटर) में फैला हुआ है,जो भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है। आमेर का किला जो की भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है, जयपुर का यह किला मुख्य पर्यटन क्षेत्र में आता है। पुराणों के अनुसार आमेर शहर उस समय में मीनाओ ने बनवाया था और उसके बन जाने के बाद सबसे पहले वहा राजा मान सिंह प्रथम ने शासन किया था।
आमेर का किला हिन्दू साहित्य कला के लिये बहुत प्रसिद्ध है। आमेर के इस किले में बहुत से दर्शनीय देखने लायक पथदीप, दरवाजे और छोटे-छोटे से तालाब भी बने हुए है। आमेर किले में ये तालाब पानी का यह मुख्य स्त्रोत माना जाता है। आमेर में जो पहले साहित्यिक कार्यक्रम होते थे,उनके नज़ारे हमको आमेर की दीवारो में देखने को मिल जाती है। जो की लाल पत्थर और मार्बल से बहुत ही सुन्दर बनी हुई है। किले के अंदर एक आँगन भी बना हुआ है। किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास और शीश महल ओट जय मंदिर और सुख निवास भी बना हुआ है, जहा आज भी हमेशा ठंडी और ताज़ा प्राकृतिक हवाये चलती रहती है। आमेर किले को कई बार आमेर महल भी कहा जाता है। इस महल में पहले के राजपूत राजा महाराजा और उनका परीवार रहा करता था। किले के प्रवेश द्वारा गणेश गेट पर चैतन्य पंथ की देवी सिला देवी का मंदिर बना हुआ है, जो राजा मानसिंह को दिया गया था, जब उन्होंने 1604 में बंगाल में जैसोर के राजा को पराजीत किया था(फ़िलहाल जैसोर बांग्लादेश में आता है)।
जयगढ़ किले के साथ यह महल चील का टीला के ऊपर ही स्थापित किया गया है। महल और जयगढ़ किले को एक कॉम्पलेक्स ही माना जाता है क्योकि ये दोनों ही एक गुप्त मार्ग से जुड़े हुए है। पहले के युद्ध के समय इस मार्ग का उपयोग शाही परिवार के सदस्यों को बाहर निकालने में किया जाता था, जिन्हें गुप्त रास्ते से आमेर किले से निकालकर जयगढ़ किले में ले जाया जाता था। हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी द्वारा किये हुए सर्वे के अनुसार रोज़ 5000 पर्यटक किले को देखने आते है, और उनके अनुसार 2007 तक वहाँ तक़रीबन 1.4 मिलियन से भी ज्यादा पर्यटक आ चुके है। 2013 में कोलंबिया के फनों पेन्ह में ली गयी 37 वी वर्ल्ड हेरिटेज मीटिंग में आमेर किले के साथ ही राजस्थान के पाँच और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था।
आमेर के किले का प्रारंभिक इतिहास-
कचवाहस् के समय आमेर एक छोटा महल हुआ करता था, जिसे मीनाओ ने बनवाया था, उन लोगो ने इस महल का निर्माण उनकी अपनी मातृ देवी गट्टा रानी के लिये बनवाया था। कहा जाता है की वास्तव में इस किले का निर्माण 967 ईस्वी में रजा मान सिंह ने किया था। अम्बेर के कछवाह के राजा मान सिंह के शासनकाल में इस किले का निर्माण किया गया था, और साथ की कलाकृतियाँ भी की गयी थी। उनके जाने के बाद जय सिंह प्रथम ने भी आमेर किले पर बहोत समय तक राज किया था, जब तक की कछवाह अपनी राजधानी को जयपुर में स्थानांतरित नही कर लेते।
आमेर के किले की कुछ रोमांचक बाते –
आमेर के किले का नामकरण अम्बा माता से हुआ था, जिन्हें मीनाओ की देवी भी कहा जाता था।
किले का नामकरण -
प्राचीन काल में आमेर को अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ के नाम से जाना जाता था। कुछ लोगों का कहना था कि अम्बकेश्वर भगवान शिव के नाम पर यह नगर "आमेर" बना, परन्तु अधिकांश लोग और तार्किक अर्थ अयोध्या के राजा भक्त अम्बरीश के नाम से जोड़ते हैं। कहते हैं भक्त अम्बरीश ने दीन-दुखियों के लिए राज्य के भरे हुए कोठार और गोदाम खोल रखे थे। सब तरफ़ सुख और शांति थी, परन्तु राज्य के कोठार दीन-दुखियों के लिए खाली होते रहे। भक्त अम्बरीश से जब उनके पिता ने पूछताछ की तो अम्बरीश ने सिर झुकाकर उत्तर दिया कि ये गोदाम भगवान के भक्तों के गोदाम है और उनके लिए सदैव खुले रहने चाहिए। भक्त अम्बरीश को राज्य के हितों के विरुद्ध कार्य करने के लिए आरोपी ठहराया गया और जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा अंकित किया जाने लगा तो लोग और कर्मचारी यह देखकर दंग रह गए कि कल तक जो कोठार खाली पड़े थे, वहाँ अचानक रात भर में माल कैसे भर गया। भक्त अम्बरीश ने इसे ईश्वर की कृपा कहा। चमत्कार था यह भक्त अम्बरीश का और उनकी भक्ति का। राजा नतमस्तक हो गया। उसी वक्त अम्बरीश ने अपनी भक्ति और आराधना के लिए अरावली पहाड़ी पर इस स्थान को चुना, उनके नाम से कालांतर में अपभ्रंश होता हुआ अम्बरीश से "आमेर" या "आम्बेर" बन गया। इस तरह इस किले का नामकरण हुआ।
अम्बेर किला जो की आमेर में स्थापित है। आमेर शहर 4 वर्ग किलोमीटर (1.5 वर्ग मीटर) में फैला हुआ है,जो भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है। आमेर का किला जो की भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है, जयपुर का यह किला मुख्य पर्यटन क्षेत्र में आता है। पुराणों के अनुसार आमेर शहर उस समय में मीनाओ ने बनवाया था और उसके बन जाने के बाद सबसे पहले वहा राजा मान सिंह प्रथम ने शासन किया था।
आमेर का किला हिन्दू साहित्य कला के लिये बहुत प्रसिद्ध है। आमेर के इस किले में बहुत से दर्शनीय देखने लायक पथदीप, दरवाजे और छोटे-छोटे से तालाब भी बने हुए है। आमेर किले में ये तालाब पानी का यह मुख्य स्त्रोत माना जाता है। आमेर में जो पहले साहित्यिक कार्यक्रम होते थे,उनके नज़ारे हमको आमेर की दीवारो में देखने को मिल जाती है। जो की लाल पत्थर और मार्बल से बहुत ही सुन्दर बनी हुई है। किले के अंदर एक आँगन भी बना हुआ है। किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास और शीश महल ओट जय मंदिर और सुख निवास भी बना हुआ है, जहा आज भी हमेशा ठंडी और ताज़ा प्राकृतिक हवाये चलती रहती है। आमेर किले को कई बार आमेर महल भी कहा जाता है। इस महल में पहले के राजपूत राजा महाराजा और उनका परीवार रहा करता था। किले के प्रवेश द्वारा गणेश गेट पर चैतन्य पंथ की देवी सिला देवी का मंदिर बना हुआ है, जो राजा मानसिंह को दिया गया था, जब उन्होंने 1604 में बंगाल में जैसोर के राजा को पराजीत किया था(फ़िलहाल जैसोर बांग्लादेश में आता है)।
जयगढ़ किले के साथ यह महल चील का टीला के ऊपर ही स्थापित किया गया है। महल और जयगढ़ किले को एक कॉम्पलेक्स ही माना जाता है क्योकि ये दोनों ही एक गुप्त मार्ग से जुड़े हुए है। पहले के युद्ध के समय इस मार्ग का उपयोग शाही परिवार के सदस्यों को बाहर निकालने में किया जाता था, जिन्हें गुप्त रास्ते से आमेर किले से निकालकर जयगढ़ किले में ले जाया जाता था। हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी द्वारा किये हुए सर्वे के अनुसार रोज़ 5000 पर्यटक किले को देखने आते है, और उनके अनुसार 2007 तक वहाँ तक़रीबन 1.4 मिलियन से भी ज्यादा पर्यटक आ चुके है। 2013 में कोलंबिया के फनों पेन्ह में ली गयी 37 वी वर्ल्ड हेरिटेज मीटिंग में आमेर किले के साथ ही राजस्थान के पाँच और किलो को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल किया गया था।
आमेर के किले का प्रारंभिक इतिहास-
कचवाहस् के समय आमेर एक छोटा महल हुआ करता था, जिसे मीनाओ ने बनवाया था, उन लोगो ने इस महल का निर्माण उनकी अपनी मातृ देवी गट्टा रानी के लिये बनवाया था। कहा जाता है की वास्तव में इस किले का निर्माण 967 ईस्वी में रजा मान सिंह ने किया था। अम्बेर के कछवाह के राजा मान सिंह के शासनकाल में इस किले का निर्माण किया गया था, और साथ की कलाकृतियाँ भी की गयी थी। उनके जाने के बाद जय सिंह प्रथम ने भी आमेर किले पर बहोत समय तक राज किया था, जब तक की कछवाह अपनी राजधानी को जयपुर में स्थानांतरित नही कर लेते।
आमेर के किले की कुछ रोमांचक बाते –
आमेर के किले का नामकरण अम्बा माता से हुआ था, जिन्हें मीनाओ की देवी भी कहा जाता था।
आमेर किले की सबसे आतंरिक सुंदरता में महल में बना शीश महल सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है।
राजपूतो के सभी किलो और महलो में आमेर का किला सबसे रोमांचक किला है।
आमेर के किले की परछाई मोटे झरने में पड़ती है, जो एक चमत्कारिक परियो के महल की तरह ही दिखाई देता है।
इस किले का सबसे बड़ा आकर्षण किले के निचे है, जहा हाथी आपको आमेर किले में ले जाते है। हाथी की सैर करना निश्चित ही सभी को आकर्षित करता है।
अम्बेर में स्थापित, जयपुर से 11 किलोमीटर की दुरी पर स्थित आमेर किला कछवाह राजपूतो की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन जयपुर के बनने के बाद जयपुर उसकी राजधानी बन गयी थी।
महल का एक और आकर्षण चमत्कारिक फूल भी है, जो एक मार्बल का बना हुआ है और जिसे साथ अद्भुत आकारो में बनाया गया है। मार्बल द्वारा बनी यह आकृति सभी का दिल मोह लेती है।
महल का एक और आकर्षण प्रवेश द्वार गणेश गेट है, जिसे प्राचीन समय की कलाकृतियों और आकृतियों से सजाया गया है।
जयगढ़ किले और आमेर किले के बीच एक 2 किलोमीटर का गुप्त मार्ग भी बना हुआ है। पर्यटक इस रास्ते से होकर एक किले से दूसरे किले में जा सकते है।
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