भगवान शिव की सबसे पहली पत्नी माता सती! के मृत देह से ५१ शक्ति पीठों का निर्माण हुआ उनके प्रादुर्भाव की कथा-

भगवान शिव की सबसे पहली पत्नी माता सती! के मृत देह से ५१ शक्ति पीठों का निर्माण हुआ उनके प्रादुर्भाव की कथा-




माता सती! जो कि ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष तथा पसूति कि सोलहवीं कन्या थी तथा जिनका शुभ विवाह भगवान शिव जी के साथ हुआ था। प्रजापति दक्ष द्वारा आद्या शक्ति माता को कन्या के रूप में प्राप्त करने हेतु, बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ा, जिसके फलस्वरूप, उन्होंने देवी सती के रूप में दक्ष के शुभ घर में जन्म लिया। भगवान ब्रह्मा जी ने देवी सती का विवाह करने का निर्णय लिया, जिसके फ़लस्वरूप उनको देवी सती के लिए भगवान शिव उचित वर के रूप में मिले, उसके बाद उन्होंने अपने पुत्र दक्ष से अपनी बेटी देवी सती का विवाह शिव जी से करने को कहा, परन्तु दक्ष अपनी पुत्री के इस विवाह प्रस्ताव से बिल्कुल संतुष्ट नहीं थे। क्योकि एक बार दक्ष किसी उत्सव पर गए, वहां पहले से ही भगवान शिव मौजूद थे, जिन्होंने राजा दक्ष का अभिवादन नहीं किया, परन्तु वहा पर  उपस्थित समस्त लोगो ने उनका हाथ जोड़ अभिवादन किया। जिसकी वजह से राजा दक्ष भगवान शिव पर क्रुद्ध हो गए, क्योकि वे शिव के ससुर (पिता) थे, और उनका अभिवादन शिव के द्वारा इस प्रकार हुआ।




दक्ष का भगवान शिव जी से क्रुद्ध होने का ओर भी बहुत बड़ा कारण था, शिव का सम्बन्ध विध्वंसक वस्तुओं से था, जो की दक्ष को बिलकुल पसंद नहीं था, यह भी उनके घृणा-उपेक्षा का एक बड़ा कारण था। शिव का श्मशान में निवास करना, भस्म चिता को अपने शरीर में लगाना, खोपड़ियों तथा हड्डी की माला की अपने गले में धारण करना, सर्पो को अपना प्रिय आभूषण बनाना, गांजा तथा चिल्लम पान इत्यादि अमंगलकारी वस्तुओं से सम्बन्ध रखना। शिव जी दरिद्र थे, मारे हुए पशुओं के खाल-चर्म पहनते थे, चिमटा, खप्पर, कमंडल, सांड, त्रिशूल, हड्डियां ही उनकी संपत्ति थी तथा उनके समस्त साथी डरावने भूत-प्रेत इत्यादि अशुभ शक्तियां थीं। शिव के इस प्रकार के साथियो के साथ की वजह से दक्ष को वे बिल्कुल पसंद नहीं आये।

दक्ष का भगवान शिव के क्रोध करने के बहुत से कारण थे। एक बार भगवान शिव जी से ब्रह्मा जी का एक सर कट गया था। माता सती के पिता दक्ष अपने पिता ब्रह्मा जी पांच मस्तकों से युक्त थे, इसीलिए दक्ष शिव को ब्रह्म हत्या का दोषी भी मानते थे। इसी के चलते एक बार प्रजापति दक्ष ने 'बृहस्पति श्रवा' नाम के एक महान यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें दक्ष ने अपने इस महान यज्ञ में तीनों लोकों से सभी प्राणी, ऋषि, देवी-देवता, मनुष्य, गन्धर्व इत्यादि सभी को आमंत्रित किया। दक्ष! भगवान शिव से घृणा करते थे, इसके परिणामस्वरूप, दक्ष ने शिव जी से सम्बन्ध रखने वाली अपनी पुत्री या किसी भी अन्य प्रकार का सम्बन्ध रखने वाले को अपने उस महान यज्ञ के आयोजन में आमंत्रित नहीं किया। इस बात की खबर देवी सती को नारद मुनि से मिली के उनके पिता ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया है और तीनों लोकों से समस्त प्राणी उनके पिता जी के इस यज्ञ के आयोजन में जा रहे हैं, और उन्होंने शिव से क्रोध के कारण उनको और उनसे संबधित किसी भी इंसान को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया, तो देवी सती ने अपने पति भगवान शिव ने अपने पिता के घर हो रहे इस महान यज्ञ आयोजन के में जाने कि अनुमति मांगी। भगवान शिव! दक्ष के क्रोधित व्यवहार से अच्छी तरह से परिचित थे, उन्होंने देवी सती को अपने पिता के घर जाने की अनुमति नहीं दी तथा सभी प्रकार से उन्हें समझाने की चेष्टा की। परन्तु देवी देवी सती नहीं मानी, और अंततः भगवान शिव ने माता सती को अपने गणो के साथ अपने पिता के घर जाने की अनुमति दे ही दी।

शिव के इस बात को सुन कर माता सती अपने पिता दक्ष के घर उस महान यज्ञ में पहुंच गए, जब देवी सती वहा पहुंची, तो उनके पिता के इस यज्ञानुष्ठान स्थल में माता को बहुत अपमानित हुई। दक्ष ने अपनी एक मात्र पुत्री देवी सती को उनके पति शिव के साथ बहुत खूब उलटा सीधा कहा। इस घोर अपमान के परिणामस्वरूप, देवी अपने तथा स्वामी के अपमान से तिरस्कृत हो गयी और वे इस अपमान को सहन नहीं कर सकी, इसिलय वे उस महान  यज्ञ में आये सम्पूर्ण यजमानों के सामने देखते ही देखते अपनी आहुति यज्ञ कुण्ड में दे दी, उन्होंने अपने आप को योग-अग्नि में भस्म कर दिया।





माता सती के दवारा किये गए इस काम का आभास जब  भगवान शिव को हुआ, तो वे अत्यंत क्रुद्ध हो गए। तो क्रोध में शिव ने अपने जटा के एक टुकड़े से वीरभद्र को प्रकट किया, जो स्वयं महाकाल के ही स्वरूप थे तथा उस जटा के एक भाग से महाकाली देवी का भी प्राकट्य हुआ। और उन्होंने वीरभद्र तथा महाकाली को अपने गणो के साथ, दक्ष के उस यज्ञ स्थल में सर्वनाश करने की आज्ञा दे दी। भगवान शिव के इस आदेश के अनुसार दोनों ने यज्ञ का सर्वनाश कर दिया, और उन्होंने प्रजापति दक्ष का गला काट कर उस के सर की आहुति यज्ञ कुण्ड में दे दी। तभी  भगवान शिव यज्ञ स्थल में आये तथा अपनी प्रिय पत्नी देवी सती के शव को उस यज्ञ कुंड में से निकल कर सीधा अपने कंधे पर उठा लिया, और  तांडव नृत्य करने लगे। (शिव का नटराज स्वरूप, तांडव नित्य का ही प्रतीक हैं।) 




भगवान शिव के क्रुद्ध हो तांडव नृत्य करने से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया तथा जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लग गयी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। ‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में माता सती ने हिमवान राजा के घर पर माता पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर उन्होंने भगवान शिव को पुन: अपने स्वामी के रूप में प्राप्त कर लिया। 

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