जानिए रानी पद्मावती के जोहर की कहानी 

जानिए रानी पद्मावती के जोहर की कहानी- 



चित्तौड़ की रानी पद्मिनी जिन्हें हम रानी पद्मावती के नाम से भी जानते है।  13 वीं -14 वीं शताब्दी की सभी महान भारतीय रानियों में से एक रानी पद्मावती है। इतिहास में  रानी पद्मिनी को उनकी अपूर्व सुंदरता और उनके सोंदर्य से जाना जाता है। पदमिनी, सिंहला की राजकुमारी थी, उनके पिता गंधार्व्सेना श्रीलंका में स्थित सिंहला राज्य के राजा थे। पद्मिनी अब विवाह के योग्य हो चुकी थी, तो एक बार उनके पिता ने उनके लिए एक स्वयंवर रखा, जिसमे सभी हिन्दू राजाओ और राजपूतो को बुलाया गया। वही पद्मिनी के स्वयंवर में चितौड़ गढ़ के राजा रावल रत्न सिंह भी आ पहुंचे। राजा रावल रत्न सिंह की 13 रानियाँ होने के बाद भी वो इस स्वयंवर में आ पहुंचे। और तो और उन्होंने वहा आये सभी राजाओ को हरा कर रानी पदमिनी को जीत लिया। उन्हें अपने साथ चितौडगढ़ ले आये,और उसके बाद रत्न सिंह को रानी से प्रेम हो गया फिर उन्होंने उसके बाद कभी शादी नही की । रत्न सिंह सिसोदिया वंश के राजा थे। राजा रत्न सिंह का राज्य बहुत विशाल था,  जो की बहुत ही खुशहाल राज्यों में से एक था, जहा बड़े बड़े कलाकार, बुद्धिजीवी और श्रेष्ठ योधा थे और राजा रत्न सिंह भी उन सब की कदर करते थे।

राजा रत्न सिंह के राज्य में एक संगीतकर “राघव चेतन” था। जिसे प्रजा एक अव्वल दर्जे का संगीतकार मानती थी,  और राजा भी उनके संगीत की हमेशा से ही तारीफ किया करते थे लेकिन संगीतकार राघव चेतन अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हमेशा कला का जादू कर के हर बार जीत जाता था। ये बात किसी तरह राजा तक पहुच गई और जब ये बात राजा  रत्न सिंह को पता चली तो राजा ने उसे दण्ड भी दे दिया और फिर उसे राज्य से बाहर निकालने का आदेश भी दे दिया। संगीतकार राघव चेतन ये सब बर्दाश नही कर पाया और उसने राजा से बदला लेने की योजना बनाई। 



वह दिल्ली चला गया और वहां के सुल्तान अल्लाउदीन खिलजी के पास जाकर रानी के सौन्दर्य का बखान करने लगा।अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। अल्लाउदीन खिलजी रानी के बारे में सुन कर खुद को रोक ही नही पाया और रानी को देखने के लिए महमान बन कर राजा रत्न सिंह के महल जा पंहुचा। फिर रत्न सिंह के महल पहुँच कर भी खिलजी रानी का चेहरा  देख नही सका। क्योकि परम्परा के अनुसार रानी किसी  पराये मर्द को अपना मुहँ नही दिखाती और घूँघट में ही रहती थी।


 यह बात जान कर खिलजी ने राजा रत्न सिंह से आग्रह किया की वह रानी को देखना चाहते है लेकिन रानी पद्मावती ने इस बात को मानने से मना कर दिया। राजा रत्न सिंह ने रानी को समझाया की खिलजी एक बहुत बड़े साम्राज्य के सुल्तान है। उन्हें मना करना ठीक नही होगा, यह सब जान कर रानी मान गई लेकिन रानी ने एक शर्त रखी की खिलजी, शीशे में उन्हें देख सकता है। लेकिन वो भी रतन सिंह और कुछ दासियों के सामने ही हमे देख सकते है, यह शर्त खिलजी ने स्वीकार कर ली।



रानी पद्मावती को शीशे में देखते ही खिलजी के मन में  रानी के लिए मोह आ गया और उसकी सुन्दरता का कायल हो गया। और उसी दिन अपने सैनिको के दम पर खिलजी ने छल से राजा रत्न सिंह को बंधी बना लिया, और राजा के बदले रानी पदमिनी की मांग करने लगा। रानी पद्मावती भी राजपूतो के खानदान से थी। वो हार कैसे मान सकती थी? इसीलए रानी पद्मावती ने अपने सेनापति गौरा और उनके भतीजे बादल के साथ मिल कर एक नई योजना बनाई। गौरा और बादल चितौडगढ़ के महान योद्धा थे। उनकी योजना थी की रानी अपनी 700 सखियों के साथ खिलजी के पास जाएगी और खिलजी रत्न सिंह को छोड़ देगा। यह पैगाम खिलजी को भेजा गया की रानी के साथ उसकी 700 सखियों उसे विदा करने आएगी और खिलजी रानी पद्मावती की इस बात को मान गया। लेकिन 700 रानियों की जगह 700 सैनिक उन पालकियो में बैठ कर पहुंचे, जिसमे रानी की जगह पर सेनापति गौरा बैठे थे।खिलजी के पास पहुच कर रानी यानी गौरा ने पहले रत्न सिंह से मिलने की मांग की। कड़े पहरे के बीच एक बंद तम्बू में रत्न सिंह को रानी से मिलवाया गया और रत्न सिंह को वहां से छुडवा लिया। राजा रत्न सिंह बादल के साथ चितौडगढ़ सकुशल वापिस आ गए जबकि गौरा की वहा मृत्यु हो गई। इतना सब होने के बाद खिलजी ने चितौडगढ़ पर हमला कर दिया लेकिन वह राजा रत्न सिंह के किले के दरवाजे को नही तोड़ पाए। अब खिलजी ने अपने सेनिको को आदेश दिया की वे राजा रत्न सिंह के किले को चारो तरफ से घेर ले, जिससे कुछ दिनों बाद किले में खाने पिने की समस्या आने लगी तो राजा को दरवाजा खोलना पड़ा लेकिन राजा रतन सिंह का आदेश था की मरते दम तक लड़ते रहना, और अंत में राजा रत्न सिंह की भी उस युद्ध में मृत्यु हो गई।


यह बात सुन कर के राजा रत्न सिंह की युद्व में मृत्यु हो गयी है, रानी पद्मावती ने अपनी पवित्रता को कायम रखने के लिए आग में कूद कर आत्मदाह कर लिया जिसे इतिहास में जोहर कहा जाता था। बताया जाता है की इसमें महल की 1600 महिलाओ ने भी उनके साथ इसी आग में जोहर किया था। हालाकिं इतिहास में अमीर ख़ुसरो द्वारा लिखा गया खज़ा’इनउल फुतूह जो अलाउद्दीन खिलज़ी के चित्तौड़गढ़ अभियान का एकमात्र स्रोत है। पद्मावती का युद्ध अभियान में कोई जिक्र नहीं करता। अमीर ख़ुसरो अलाउद्दीन खिलज़ी के दरबार के एक प्रमुख कवि, शायर, गायक और संगीतकार थे।



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