जानिए माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश को हमेशा साथ-साथ में ही क्यों पूजा जाता है?
जानिए माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश को हमेशा साथ-साथ में ही क्यों पूजा जाता है?
संसार में एक मात्र अवतार जो हमारे बिगड़े काम सफल बनाता है। जिसके होने से सभी कार्य बिना किसी बाधा व संकट के संपन्न हो जाते हैं. वो विघ्नहर्ता व समस्त जगत का पालनहार है। दुनिया की सभी खुशियां उसी में समाई हैं और वो हैं, भगवान श्री गणेश है।
आदिपूज्य हैं गणेश जी-
संसार में एक मात्र अवतार जो हमारे बिगड़े काम सफल बनाता है। जिसके होने से सभी कार्य बिना किसी बाधा व संकट के संपन्न हो जाते हैं. वो विघ्नहर्ता व समस्त जगत का पालनहार है। दुनिया की सभी खुशियां उसी में समाई हैं और वो हैं, भगवान श्री गणेश है।
आदिपूज्य हैं गणेश जी-
भगवान शिव व माता पार्वती के प्रिय पुत्र श्री गणेश को किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले याद किया जाता है। क्योकि लोग अपने जीवन को सफल बनाने के लिए सबसे पहले गणपति पूजन करते हैं। गणेश जी को गणपति भी कहा जाता है। उनका मुख एक गज (हाथी) के समान होने के कारण उन्हें गजपति व गजानन भी कहा जाता है। पुराणों और शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी कार्य को संपन्न बनाने के लिए गणेश पूजन आवश्यक है इसीलिए उन्हें आदिपूज्य भी कहा गया है।
ऐसे हुआ था गणेश का जन्म-
विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी को लेकर कई प्रकार की कहानियां विख्यात हैं। पुराणों में खा गया है कि भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती ने गणेश को जन्म नहीं दिया था बल्कि अपने शरीर की मैल से गणेश के शरीर की रचना की थी। उस समय उनका मुख सामान्य था। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि स्नान के समय पहरेदार पाने के लिए पार्वती ने गणेश की रचना की थी माता पार्वती के आदेश के अनुसार पुत्र गणेश ने किसी को भी घर में प्रवेश नहीं करने दिया। कुछ समय के पश्चात स्वयं भगवान शिव वहां उपस्थित हुए और बोले “पुत्र यह मेरा घर है, मुझे प्रवेश करने दो” गणेश के रोकने पर प्रभु ने क्रोध में आकर गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया, तभी माता पार्वती आईं और गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख व्याकुल हो उठीं, उनकी व्याकुलता देख शिव ने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया और उन्हें प्रथम पूज्य का वरदान भी दिया। तभी से शिव जी के आशीर्वाद के अनुसार सबसे पहले गणेश की पूजा होती है, और उनकी पहले पूजा से सभी काम सम्पूर्ण होते है।
विष्णु की पत्नी के साथ होता है गणेश का पूजन-
भगवान विष्णु जी की पत्नी माता लक्ष्मी जी है लेकिन फिर भी श्री गणेश का पूजन हमेशा माता लक्ष्मी से साथ किया जाता है, ऐसा क्यों? यह तो सभी जानते हैं कि लक्ष्मी जी, विष्णु जी की प्राण वल्लभा व प्रियतमा मानी गई हैं। यदि धन की देवी को प्रसन्न करना है, तो उनके पति विष्णु जी का उनके साथ पूजन करना आवश्यक माना गया है। ऐसा क्यों नहीं किया जाता है, पुराणों और शास्त्रों में यह मान्यता है कि लक्ष्मी जी विष्णु जी को कभी नहीं छोड़तीं। वेदों के अनुसार भी विष्णु जी के प्रत्येक अवतार में लक्ष्मी जी को ही उनकी पत्नी का स्थान मिला है। जहां विष्णु जी हैं वहीं उनकी पत्नी लक्ष्मी जी भी हैं। लेकिन फिर भी आज भगवान विष्णु के साथ नहीं बल्कि गणेश के साथ लक्ष्मी का पूजन किया जाता है।
विष्णु के स्थान पर गणेश के साथ क्यूं होता है लक्ष्मी का पूजन ?
लक्ष्मी जी के साथ गणेश का पूजन करने का शास्त्रों में क्या आधार है? लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा दीपावली के दिन की जाती है। यह तो सभी जानते हैं कि दीपावली पर्व का अत्यंत प्राचीन काल से अत्यधिक महत्व है। हिन्दू धर्म में इस त्यौहार को अत्यंत महत्ता दी जाती है।
इस दिन सभी लोग अपने-अपने घरों को साफ सुथरा करके, स्वयं भी शुद्ध पवित्र होकर रात्रि को विधि-विधान से गणेश लक्ष्मी का पूजन कर उनको प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। दीपावली के त्यौहार में लक्ष्मी पूजन एक ही भावना से किया जाता है कि मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन का प्रकाश लेकर आएं। इस पूजा में यदि हम चाहते हैं कि लक्ष्मी जी का स्थाई निवास हमारे घर में हो और उनकी कृपा हम पर बनी रहे तो उनके पति विष्णु जी का आह्वान करना चाहिये लेकिन फिर भी विष्णु के स्थान पर गणेश को पूजा जाता है, ऐसा क्यों?
शास्त्रों के अनुसार गणेश जी को लक्ष्मी जी का मानस-पुत्र माना गया है। दीपावली के शुभ अवसर पर ही इस दोनों का पूजन किया जाता है। तांत्रिक दृष्टि से दीपावली को तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने तथा महाशक्तियों को जागृत करने की सर्वश्रेष्ठ रात्रि माना गया है। यह तो सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य को करने से पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है लेकिन इसके साथ ही गणेश जी के विविध नामों का स्मरण सभी सिद्धियों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन एवं नियामक भी है। अतः दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ निम्न गणेश मंत्र का जाप सर्व सिद्धि प्रदायक माना गया है।
इसलिए भी पूजा जाता है गणेश जी को-
गणेश जी का स्मरण वक्रतुंड, एकदन्त, गजवक्त्र, लंबोदर, विघ्न राजेंद्र, धूम्रवर्ण, भालचंद्र, विनायक, गणपति, एवं गजानन इत्यादि विभिन्न नामों द्वारा किया जाता है। इन सभी रूपों में गणेश जी ने देवताओं को दानवों के प्रकोप से मुक्त किया था। दानवों के अत्याचार के कारण उस समय जो अधर्म और दुराचार का राज्य स्थापित हो गया था, उसे पूर्णतया समाप्त कर न केवल देवताओं को बल्कि दैत्यों को भी अभय दान देकर उन्हें अपनी भक्ति का प्रसाद दिया और उनका भी कल्याण ही किया। अतः स्पष्ट है कि दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन का धार्मिक, अध्यात्मिक, तांत्रिक एवं भौतिक सभी दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है ताकि लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर हमें धन-संपदा प्रदान करें तथा उस धन को प्राप्त करने में हमें कोई भी कठिनाई या विघ्न ना आए, हमें आयुष्य प्राप्त हो, सभी कामनाओं की पूर्ति हो तथा सभी सिद्धियां भी प्राप्त हों।
दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन करने में संभवतः एक भावना यह भी कही गई है कि मां लक्ष्मी अपने प्रिय पुत्र की भांति हमारी भी सदैव रक्षा करें. हमें भी उनका स्नेह व आशीर्वाद मिलता रहे।
लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी को सदा लक्ष्मी जी की बाईं ओर ही रखें। आदिकाल से पत्नी को ‘वामांगी’ कहा गया है। बायां स्थान पत्नी को ही दिया जाता है. अतः पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश को इस प्रकार स्थापित करें कि लक्ष्मी जी सदा गणेश जी के दाहिनी ओर ही रहें, तभी पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होगा।
nice thanks for share with me .... :-)
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