पढ़िये! ये रोमांचक कहानी जो कि जुड़ी है, मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर की स्थापना से -
पढ़िये! ये रोमांचक कहानी जो कि जुड़ी है, मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर की स्थापना से -
नई मुंबई के बर्ली और मालाबार हिल (वह क्षेत्र जिसे अब ब्रीच केंडी कहा जाता है) को जोड़ने वाली उस दीवार के बनने के समय की एक रोमांचक कहानी जुड़ी है। पहले ऐसा कहा जाता है कि जिस समय यहां दीवार बनाई जा रही थी उस समय इस दिवार को बनाने में कई तरह की परेशानी आ रहीं थीं। निर्माण कार्य चल रहा था, तब दोनों क्षेत्रों को जोड़ने वाली दीवार बार-बार गिरती जा रही थी। ब्रिटिश इंजीनियर्स के सारे प्रयास बेकार जा रहे थे, तब प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर को सपने में महालक्ष्मी माता ने दर्शन दिए और कहा की बर्ली के पास समुद्र में तुम्हें मेरी मूर्ति दिखाई देगी। एक इंजीनियर से लक्ष्मीजी ने सपने में कहा कि उनकी मूर्ति समुद्र में अंदर पड़ी हुई है। और तुम इस मूर्ति को वहां से निकाल कर यहां मंदिर बनवाओ। कहा जाता है, कि माता के निर्देश के अनुसार उस इंजीनियर ने वह पर खोज करना शुरू कर दिया, काफी खोज करने पर ये मूर्ति उन्हें उसी जगह मिल गई, जहां उन्हें माता ने बताया था। इस घटना के बाद चीफ इंजीनियर ने इसी जगह पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और उसके बाद यह निर्माण कार्य बड़ी आसानी से संपन्न हो गया। इसी मंदिर को आज मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर कहा जाता है, जो कि महालक्ष्मी एक प्रसिद्ध मंदिर है। ये मंदिर भुलाभाई देसाई मार्ग पर समुद्र के किनारे है। इस मंदिर का व्यापक निर्माण साल 1831 में धाकजी दादाजी नाम के व्यापारी ने कराया था।
यह मंदिर समुद्र के किनारे बसा होने की वजह से इसकी सुंदरता ओर बढ़ जाती है। मंदिर के अंदर देवी महालक्ष्मी, देवी महाकाली और देवी महासरस्वती की प्रतिमाएं स्थित हैं। तीनों ही मूर्तियाँ नाक में नथ, सोने की चूड़ियाँ और मोती के हार से सुसज्जित हैं। महालक्ष्मी माता की मूर्ति में माता को शेर पर सवार होकर महिसासुर का वध करते हुए दिखाया गया है। नवरात्री में मंदिर में माता के दर्शन के लिए लोगों को अपनी बारी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
आप सभी महालक्ष्मी देवी के दर्शन अभी जिस रूप में करते हैं वह वास्तविक प्रतिमा के दर्शन नहीं हैं। अभी तो तीनों माताओं के असली स्वरुप सोने के मुखौटों से ढंके हुए हैं। मंदिर में विराजमान देवी महालक्ष्मी की मूर्ती स्वयम्भू है। वास्तविक मूर्ति को बहुत कम लोग देख पाते हैं, असली मूर्ती के दर्शन करने के लिए आपको रात में लगभग 9:30 बजे मंदिर में जाना होता है। उस समय पर माता के असली स्वरुप के दर्शन करना संभव हो जाता है। रात के इस समय मूर्तियों पर जो आवरण चढ़ा हुआ होता है उसे हटा दिया जाता है तथा 10 से 15 मिनट के लिए भक्तों के दर्शन के लिए मूर्तियों को खुला ही रखा जाता है और उसके बाद मंदिर बंद हो जाता है। सुबह 6 बजे मंदिर खुलने के साथ ही माता का अभिषेक किया जाता है तथा उसके तत्काल बाद ही मूर्तियों के ऊपर फिर से आवरण चढ़ा दिए जाते है।
मान्यता के अनुसार मंदिर के पीछे की दीवार पर लोग मनौति के सिक्के चिपकाते हैं। यहां हजारों सिक्के अपने आप चिपक जाते हैं। मंदिर के पीछे की तरफ कुछ सीढ़ियां उतरने के बाद समुद्र का सुंदर नजारा देखा जा सकता है।
नई मुंबई के बर्ली और मालाबार हिल (वह क्षेत्र जिसे अब ब्रीच केंडी कहा जाता है) को जोड़ने वाली उस दीवार के बनने के समय की एक रोमांचक कहानी जुड़ी है। पहले ऐसा कहा जाता है कि जिस समय यहां दीवार बनाई जा रही थी उस समय इस दिवार को बनाने में कई तरह की परेशानी आ रहीं थीं। निर्माण कार्य चल रहा था, तब दोनों क्षेत्रों को जोड़ने वाली दीवार बार-बार गिरती जा रही थी। ब्रिटिश इंजीनियर्स के सारे प्रयास बेकार जा रहे थे, तब प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर को सपने में महालक्ष्मी माता ने दर्शन दिए और कहा की बर्ली के पास समुद्र में तुम्हें मेरी मूर्ति दिखाई देगी। एक इंजीनियर से लक्ष्मीजी ने सपने में कहा कि उनकी मूर्ति समुद्र में अंदर पड़ी हुई है। और तुम इस मूर्ति को वहां से निकाल कर यहां मंदिर बनवाओ। कहा जाता है, कि माता के निर्देश के अनुसार उस इंजीनियर ने वह पर खोज करना शुरू कर दिया, काफी खोज करने पर ये मूर्ति उन्हें उसी जगह मिल गई, जहां उन्हें माता ने बताया था। इस घटना के बाद चीफ इंजीनियर ने इसी जगह पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और उसके बाद यह निर्माण कार्य बड़ी आसानी से संपन्न हो गया। इसी मंदिर को आज मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर कहा जाता है, जो कि महालक्ष्मी एक प्रसिद्ध मंदिर है। ये मंदिर भुलाभाई देसाई मार्ग पर समुद्र के किनारे है। इस मंदिर का व्यापक निर्माण साल 1831 में धाकजी दादाजी नाम के व्यापारी ने कराया था।
यह मंदिर समुद्र के किनारे बसा होने की वजह से इसकी सुंदरता ओर बढ़ जाती है। मंदिर के अंदर देवी महालक्ष्मी, देवी महाकाली और देवी महासरस्वती की प्रतिमाएं स्थित हैं। तीनों ही मूर्तियाँ नाक में नथ, सोने की चूड़ियाँ और मोती के हार से सुसज्जित हैं। महालक्ष्मी माता की मूर्ति में माता को शेर पर सवार होकर महिसासुर का वध करते हुए दिखाया गया है। नवरात्री में मंदिर में माता के दर्शन के लिए लोगों को अपनी बारी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
आप सभी महालक्ष्मी देवी के दर्शन अभी जिस रूप में करते हैं वह वास्तविक प्रतिमा के दर्शन नहीं हैं। अभी तो तीनों माताओं के असली स्वरुप सोने के मुखौटों से ढंके हुए हैं। मंदिर में विराजमान देवी महालक्ष्मी की मूर्ती स्वयम्भू है। वास्तविक मूर्ति को बहुत कम लोग देख पाते हैं, असली मूर्ती के दर्शन करने के लिए आपको रात में लगभग 9:30 बजे मंदिर में जाना होता है। उस समय पर माता के असली स्वरुप के दर्शन करना संभव हो जाता है। रात के इस समय मूर्तियों पर जो आवरण चढ़ा हुआ होता है उसे हटा दिया जाता है तथा 10 से 15 मिनट के लिए भक्तों के दर्शन के लिए मूर्तियों को खुला ही रखा जाता है और उसके बाद मंदिर बंद हो जाता है। सुबह 6 बजे मंदिर खुलने के साथ ही माता का अभिषेक किया जाता है तथा उसके तत्काल बाद ही मूर्तियों के ऊपर फिर से आवरण चढ़ा दिए जाते है।
मान्यता के अनुसार मंदिर के पीछे की दीवार पर लोग मनौति के सिक्के चिपकाते हैं। यहां हजारों सिक्के अपने आप चिपक जाते हैं। मंदिर के पीछे की तरफ कुछ सीढ़ियां उतरने के बाद समुद्र का सुंदर नजारा देखा जा सकता है।
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