बाजीराव ब्राह्मण थे, जानिए, फिर भी क्यों मुस्लिम बन गए उनके और मस्तानी के वंशज-
बाजीराव ब्राह्मण थे, जानिए, फिर भी क्यों मुस्लिम बन गए उनके और मस्तानी के वंशज-
इंदौर। एक हाथ में जनेऊ और दूजी में तलवार रखने वाले बाजीराव पेशवा कोंकणस्थ ब्राह्मण थे, लेकिन उनके और मस्तानी के वंशज मुसलमान हैं। बाजीराव की ७वीं पीढ़ी के वंशजों का कहना है कि यदि इतिहास ने एक मोड़ ना लिया होता तो वे सब भी हिन्दू होते। यह इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ था। जिसने दुनिया को बदला है।
कृष्णाजीराव बन गए शमशेर अली बहादुर-
बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेम कहानी इतनी आसानी से सफल नही हुई, उनकी प्रेम कहानी को हर मोड़ पर कठिन इम्तिहान से गुजरना पड़ा। बाजीराव ठेठ ब्राह्मण थे, लेकिन मस्तानी से शादी के बाद उस समय पुणे के ब्रह्मणों का एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ हो गया था। ये लोग उनसे इतने नाराज थे कि उन्होंने अपना गुस्सा उनके पुत्र पर निकला और उनके और मस्तानी के पुत्र का जनेऊ संस्कार भी नहीं होने दिया। बाजीराव के वंशज जुबेर बहादुर जोश बताते हैं कि मस्तानी के पुत्र का नाम कृष्णाजीराव था। उनके पुत्र का लालन-पालन हमेशा हिन्दू रीति-रिवाज से हुआ था।
ऐसा कहा लोगो ने के नहीं करेंगे मुस्लिम मां के बेटे का जनेऊ-
मस्तानी ने अपने बेटे के जनेऊ का मूहूर्त निकलाने बाजीराव ने पंडितों को बुलाया था, लेकिन पंडि़तों ने इस बात पर बवाल मचा दिया कि मुसलमान मां से जन्मे बेटे की जनेऊ वे कभी नहीं करा सकते है। बाजीराव ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। आखिरकार बाजीराव ने कृष्णाजी राव को अपनी मां का धर्म अपनाने को कहा। इसी के चलते कृष्णाजी राव फिर शमशेर अली बहादुर बन गए। जोश ने कहते हैं कि यदि उस समय पंडितों ने कृष्णाजी की जनेऊ करा दी होती तो हम सब हिन्दू होते।
प्रणामी सम्प्रदाय मानती थीं मस्तानी, करती थीं पूजा, पढ़ती थीं नमाज-
जोश के मुताबिक़ मस्तानी की मान मुसलमान थी, लेकिन वह महाराजा छत्रसाल प्रणामी सम्प्रदाय मानती थीं। इस प्रवर्तक एक हिन्दू संत ही थे। मस्तानी को भले ही उस समय के पंडितों ने स्वीकार नहीं किया, लेकिन वे हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के नायाब मेल का प्रतीक थीं। वे कृष्ण की भक्त थीं और नमाज भी पढ़ती थीं। पूजा भी करती थीं और रोजा भी रखती थीं।
इंदौर। एक हाथ में जनेऊ और दूजी में तलवार रखने वाले बाजीराव पेशवा कोंकणस्थ ब्राह्मण थे, लेकिन उनके और मस्तानी के वंशज मुसलमान हैं। बाजीराव की ७वीं पीढ़ी के वंशजों का कहना है कि यदि इतिहास ने एक मोड़ ना लिया होता तो वे सब भी हिन्दू होते। यह इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ था। जिसने दुनिया को बदला है।
कृष्णाजीराव बन गए शमशेर अली बहादुर-
बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेम कहानी इतनी आसानी से सफल नही हुई, उनकी प्रेम कहानी को हर मोड़ पर कठिन इम्तिहान से गुजरना पड़ा। बाजीराव ठेठ ब्राह्मण थे, लेकिन मस्तानी से शादी के बाद उस समय पुणे के ब्रह्मणों का एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ हो गया था। ये लोग उनसे इतने नाराज थे कि उन्होंने अपना गुस्सा उनके पुत्र पर निकला और उनके और मस्तानी के पुत्र का जनेऊ संस्कार भी नहीं होने दिया। बाजीराव के वंशज जुबेर बहादुर जोश बताते हैं कि मस्तानी के पुत्र का नाम कृष्णाजीराव था। उनके पुत्र का लालन-पालन हमेशा हिन्दू रीति-रिवाज से हुआ था।
ऐसा कहा लोगो ने के नहीं करेंगे मुस्लिम मां के बेटे का जनेऊ-
मस्तानी ने अपने बेटे के जनेऊ का मूहूर्त निकलाने बाजीराव ने पंडितों को बुलाया था, लेकिन पंडि़तों ने इस बात पर बवाल मचा दिया कि मुसलमान मां से जन्मे बेटे की जनेऊ वे कभी नहीं करा सकते है। बाजीराव ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। आखिरकार बाजीराव ने कृष्णाजी राव को अपनी मां का धर्म अपनाने को कहा। इसी के चलते कृष्णाजी राव फिर शमशेर अली बहादुर बन गए। जोश ने कहते हैं कि यदि उस समय पंडितों ने कृष्णाजी की जनेऊ करा दी होती तो हम सब हिन्दू होते।
प्रणामी सम्प्रदाय मानती थीं मस्तानी, करती थीं पूजा, पढ़ती थीं नमाज-
जोश के मुताबिक़ मस्तानी की मान मुसलमान थी, लेकिन वह महाराजा छत्रसाल प्रणामी सम्प्रदाय मानती थीं। इस प्रवर्तक एक हिन्दू संत ही थे। मस्तानी को भले ही उस समय के पंडितों ने स्वीकार नहीं किया, लेकिन वे हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के नायाब मेल का प्रतीक थीं। वे कृष्ण की भक्त थीं और नमाज भी पढ़ती थीं। पूजा भी करती थीं और रोजा भी रखती थीं।
good
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